হৃদয়ে তপ্ত করি, ভঙ্গুর যত অমানবিয় আশা।
শাপ ভ্রষ্ট মূর্তিহীন নির্দয় নিষ্ঠুর বিধাতা।
চক্রে পিষ্ঠ করে হৃদয় দুর্ভাগ্যের দাতা।
সিংহাসন যার তরে রাখি আজ, অতি যত্ন করে।
অস্তিত্ব অসত্য যদি মোর আজ, কল্পনার ঘোরে।
সবই যদি এক করি, কিবা রাখিলেন ভগবান।
পরম আদরে যারে, রত্নহারে দিই শিরস্থান।
প্রভু মোর, আজও যারে কল্পনায় এত ভালবাসি।
সন্মুখে আসিলে কহ, কি করে হৃদয় প্রকাশি।
Sayan Ghosh
Pave the path to tranquil light, let love dissolve in void unknown.
Burn my heart with fervent flames, shatter dreams in silence sown.
O ruthless fate, unshaped, unkind—
You crush my soul in wheels that grind.
A throne I built with careful hands, for one unseen yet ever near.
If I am naught but fleeting mist, lost in a dream so false, unclear.
If all dissolves to one, O Lord, what treasures do You still possess?
For whom I crown in gems and gold, with love adorned, in tenderness.
O my Lord, though still unseen, I love You deep in thoughts untold.
Yet if You stood before my eyes, how would my heart its love unfold?
Hindi Translation
निर्लिप्त का आह्वान
सयन घोष
शांतिपथ को कर विस्तृत, निर्लिप्त हो हर प्रेम यहाँ।
हृदय जले संताप में, टूटे झूठी आशा जहाँ।
शापग्रस्त, निष्ठुर विधाता, मूरतहीन, कठोर मन।
चक्र तले रौंदे हृदय, जो बाँटे केवल अश्रु-कण।
सिंहासन जिसका गढ़ा, हर श्वास में स्नेहिल छवि।
यदि मैं ही मृगतृष्णा मात्र, तो सत्य की क्या है लगन?
सब कुछ यदि समाहित हो, प्रभु तुम्हारा क्या विलास?
जिसे सँवारा प्रेम से, उस मस्तक पर रत्न प्रकाश।
हे नाथ! मन में बसा तुम ही, कल्पनाओं में प्रियतम।
पर यदि आओ सन्मुख मेरे, कैसे प्रकटे हृदय मधुरम्?
Sanskrit Translation
निर्लिप्तस्य आह्वानम्
सयनः घोषः
मार्गं शान्तेः विस्तृतं कुरु, सर्वं प्रेम परित्यज्यतु।
हृदयं दह्यतां तपसा, भङ्गुराशाः विलीयन्ताम्॥
शप्तभीतः, निर्मूर्तिः, निर्दयः, निष्ठुरो विधाता।
चक्रेण पीडयति हृदयं, दारिद्र्यं यः प्रददाति॥
सिंहासनं यः निमित्तं निर्मितं, सत्कार्येण पूजितम्।
यदि सत्यं नास्ति मम, कथं कल्पनामये भ्रमः॥
यदि सर्वं एकं भवति, किं रक्षितं भवता प्रभो?
यस्य स्नेहेण भूषितं, तस्य शिरसि रत्नश्रिया॥
हे प्रभो! मनसि स्थितोऽसि त्वं, चिन्तायां स्नेहपूर्णः।
यदि साक्षात् आगच्छसि, कथं हृदयः व्यक्तो भवेत्॥